क्या अन्य ग्रहों पर ज्वालामुखी होते हैं ? volcanoes on other planets? .
चंद्रमा की सतह पर खड्डे क्या अन्य ग्रहों पर ज्वालामुखी होते हैं ? ।
सौर – मंडल बनने के समय उसके बड़े आकार के पिंड बहुत गर्म
होंगे । सतह के धीरे – धीरे ठंडे होने के साथ – साथ उसकी ठंडी पतली पपड़ी में से अंदर की ऊष्मा बाहर आकर ज्वालामुखियां पैदा करती होगी ।
कुछ छोटे पिंड खासकर इतनी जल्दी ठंडे हुए होंगे कि वहां ज्वालामुखी फटने का कोई मौका ही नहीं मिला होगा । हो सकता है कि उन पिंडों के अंदर का तापमान बहुत ऊंचा होने के बावजूद उनकी पपड़ी इतनी सख्त और मजबूत हो गई हो कि वहां ज्वालामुखियों के फटने के लिए कोई कमजोर स्थान ही न हो ।
हमारे चंद्रमा पर ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां हजारों मील तक लावा फैला हुआ है । यह सब चंद्रमा के शुरुआती इतिहास के दौरान हुए होंगे । अब वहां पर ज्वालामुखियों के सक्रिय होने के कोई प्रमाण नहीं हैं ।
क्या मंगल ग्रह पर ज्वालामुखी होते है ।
1971 में Mariner -9 नाम के Rocket ने मंगल ग्रह की परिक्रमा लगाई और सम्पूर्ण नक्शा बनाया गया ।
। मंगल पर अनेकों क्रेटर्स , पहाड़ और घाटियां हैं । एक क्षेत्र में बड़े पहाड़ और क्रेटर्स थे जो दिखने में बिल्कुल ज्वालामुखियों जैसे थे । इसमें से सबसे बड़े का नाम olympus – मोन्स है ।
ओलम्पस – मोन्स पृथ्वी पर पाए गए किसी भी ज्वालामुखी से बड़ा है । उसकी चोटी मंगल ग्रह की औसत सतह से कोई 15 मील ऊंची है और उसका आधार 250 – मील चौड़ा है । पृथ्वी पर सबसे बड़ा ज्वालामुखी हवाई में है । ओलम्पस – मोन्स हवाई ज्वालामुखी से दो – गुना ऊंचा और तीन गुना चौड़ा है । इससे भी ज्यादा ओलम्पस – मोन्स का क्रेटर 40 – मील चौड़ा है जो पृथ्वी पर पाए किसी भी ज्वालामुखी के क्रेटर से बड़ा हैं।
जहां तक हमें पता है अब ओलम्पस – मोन्स और मंगल पर अन्य ज्वालामुखी अब निष्क्रिय हो चुके हैं । बहुत अर्से में उनमें कोई सक्रियता नहीं देखी गई है ।
क्या शुक्र ग्रह पर ज्वालामुखी होते हैं
1978 में पॉयोनियर- वीनस नाम के रॉकेट को शुक्र की परिधि की परिक्रमा करने भेजा गया । शुक्र के चारों ओर मोटे बादलों की परत के कारण उसकी सतह को देख पाना बहुत मुश्किल होता है । परन्तु रॉडार की किरणें बादलों को भेद कर सतह से किरणों को परावर्तित करती हैं । रॉडार द्वारा परावर्तन और पॉयोनियर वीनस के उपकरणों से शुक्र की सतह का लगभग पूरा नक्शा बनाया है ।
रॉडार द्वारा जो शुक्र पर पहाड़ दिखे उनमें से कुछ ज्वालामुखी भी थे । उनमें से एक पहाड़ रीहू मोन्स के आधार का क्षेत्रफल लगभग न्यू मेक्सिको जितना होगा । अगर वो सच में ज्वालामुखी निकला तो उसका क्षेत्रफल मंग स्थित ओलम्पस – मोन्स से भी बड़ा होगा । परन्तु शुक्र पर स्थित ज्वालामुखियों में भी जीवन होने के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं ।
पृथ्वी के अलावा अन्य किसी ग्रह पर अभी तक सक्रिय ज्वालामुखी होने के Record नहीं मिले हैं । पर फिर 5 मार्च 1979 को वौएजर -1 ने बृहस्पति ग्रह की परिक्रमा की और उसके उपग्रहों का अध्ययन किया ।
बृहस्पति के चार बड़े उपग्रह हैं जिनका आकार हमारे चंद्रमा या उससे कुछ बड़ा है । बृहस्पति के सबसे नजदीक जो उपग्रह है उसका नाम आईओ है । उसका आकार हमारे चंद्रमा के बराबर का है और उसकी बृहस्पति से दूरी चंद्रमा की पृथ्वी की दूरी जितनी है ।
बृहस्पति का गुरुत्वाकर्षण बल उसके उपग्रहों पर ज्वार – भाटा ( टाईड्स ) उत्पन्न करता है । इन ज्वार – भाटों से उपग्रहों के आंतरिक पत्थर दबते और खिंचते हैं और उससे वे गर्म होते हैं । आईओ क्योंकि बृहस्पति के सबसे नजदीक है इसलिए अन्य उपग्रहों की तुलना में वो ज्यादा गर्म होता है ।
वौएजर -1 के बृहस्पति की परिक्रमा करने से पहले कुछ खगोलशास्त्रियों ने मत था कि बृहस्पति के ज्वार – भाटे के कारण आईओ का तापमान ज्वालामुखी पैदा करने जितना ऊंचा हो सकता है । और जब वौएजर -1 ने बृहस्पति की परिक्रमा लगाते समय आईओ के चित्र लिए तो वहां वाकई में volcanos दिखाई पड़े ! आईओ पर Active और फटते हुए आठ ज्वालामुखी दिखाई दिए । चार महीने बाद वौएजर -2 नाम के एक अन्य रॉकेट जब वहां से गुजरा तो उस समय भी छह ज्वालामुखी सक्रिय थे ।
आईओ के सक्रिय ज्वालामुखियों में से निकलने वाले मलबे में ज्यादातर राख और गंधक की वाष्प थी । और गंधक की परत के कारण आईओ की पूरी सतह लाल , नारंगी और पीली दिखती थी । और सल्फर डाईऑक्साइड के अंश होने की वजह से यह गैस उपग्रह के लिए एक विरल वायुमंडल का काम करती थी । इसलिए हम कम – से – कम दो ऐसे खगोलीय पिंडों के बारे में जानते हैं जहां ज्वालामुखी वाकई में फटते हैं – पृथ्वी और आईओ ।
पृथ्वी पर ज्वालामुखियों में हमारी विशेष रुचि है क्योंकि विज्ञान में अपार प्रगति के बावजूद आज भी ज्वालामुखियों में लोग मारे जाते हैं और जब ज्वालामुखी फटते हैं तो हम बेबसी की हालात में वहां से Getaway करने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते हैं ।
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